धरती का स्वर्ग विवादों में

*धरती की जन्नत "कश्मीर" विवादों के घेरे में।।* 

ख़बर *परवेज़ अख़्तर* की✍️से 

कितना अजीब है ना कि जब हम लोगों का मन उच्चाट होता था तो हम लोग फिल्म देखने जाते थे,
क्योंकि फ़िल्में इंटरटेंमेंट करती थी, बहुत कुछ सिखाती थीं, बहुत ज्ञान देती थीं! पर हाल के दिनों से फिल्में अश्लीलता परोसने लगीं फिल्म मेकर लड़ाई, झगड़ा, एक्शन, क्राइम, दिखाने लगे जिससे लोगों में क्राईम करने फर्जी एक्शन करने और एक्टर्स की तरह दिखने के लिए उन्ही की तरह कपड़े पहनने लगे उन्ही की तरह नकल करने लगे।
और अब हद खत्म करते हुए फिल्मे "नफ़रत परोसने" लगीं हैं, कहानियों को तोड़ मरोड़ कर दिखाने लगी हैं एक ऐसी नफ़रत जो यकीनन दीमागों पर हावी होकर भाई को भाई से अलग करने लगी हैं।
फिल्में समाज का आइना होती हैं, फिल्मों की स्टोरी में फिल्मों के किरदारों में कुछ लोग अपने आप को देखने लगते हैं।
ऐसी कई फिल्में बनी जो दंगों पर ही आधारित थीं जिनको आज तक सेंसर ने पास नहीं किया, और वो रिलीज़ ही नहीं हुईं ! 
ये ठीक भी हुआ क्योंकि गुज़रे कल की किसी बात से मन बेचैन हो दिल को तकलीफ हो तो उसको ना याद करना चाहिए और ना ही
दोहराना चाहिए।
फिर अचानक ऐसा क्या हुआ जो कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद और लगभग सुकून के हालात बनने के बाद *((कश्मीर फाईल))* नामक फिल्म बनाने की जरूरत पड़ गई, और ऐसी कौन सी मज़बूरी थी जिसको सेंसर ने पास भी कर दिया, और किन मजबूरियों के तहत सरकार ने पूरी इज़ाजत दे दी, और टैक्स फ्री कर दिया, फिल्म मेकर और कुछ संगठनों ने जबरदस्त प्रचार प्रसार करके इसको देखने के लिए लोगों को मजबूर भी कर दिया।

जनवरी 1990 में हुई घटना ने हिन्दु भाइयों को बहुत ज़्यादा आहत किया, इस बात का हर सभ्य नागरिक को बेहद अफसोस व दुःख है,
अब अगर मूवी के ज़रिए ये बात लानी ही थी तो सही कहानी के साथ लाई जाती जिन भी किरदारों को इसमें दिखाया या फिल्माया गया है, उनके ही परिवार जन बीबीसी जैसे बड़े चैनल व अन्य माध्यमों से इसको झुठला रहे हैं!
और अगर फिर भी इस कहानी को दिखाना ही था तो क्या फिल्म के कहानीकार को ये बात नहीं पता है कि उस घटना के वक्त हिन्दू भाइयों की मौतें हुईं थीं तो उनको बचाने व उनकी मदद करने वाले सैकड़ों मुसलमानों की भी मौतें हुईं थीं!
कश्मीरी हिन्दू बच्चियों की आबरू लूटी गई थी , तो  मुस्लिम बच्चियों की भी इज्ज़त तार तार गई थी।

और अगर कहानी लिखना व दिखाना इतना ही ज़रूरी है तो गुजरात के गोधरा काण्ड पर भी मूवी बनानी चाहिए
मुजफ्फर नगर काण्ड पर भी,, लखीमपुर काण्ड पर भी,, मुजफ्फर नगर काण्ड पर भी और 1984 के उस दंगे पर भी जिसमें बेकसूर व मासूम सिखों को और उनके परिवारों को उपद्रियों ने मौत के घाट उतार दिया था।
और उन शूद्र व दलितों पर हुए अत्याचार पर भी,,फ़िल्म बनाएं, और समाज को बताएं कि इसी हिंदुस्तान में इनकी महिलाओं को अपना तन छुपाने की आजादी नही थी उन्हें अपना तन ढकने के लिए कितनी यातनाएं सहनी पड़ती थीं और "कर" (टैक्स) देना पड़ता था, फिल्मकार को ये सच को भी दिखाना चाहिए!
मैं सिर्फ यही कहना चाहूंगा कि कहीं एक वर्ग या एक हिस्से में कोई वर्ग पिड़ित हुआ हो, ऐसा नहीं है 
पूरे हिन्दुस्तान में किसी न किसी माध्यम से सभी पर जुल्मों सितम किए गए हैं।
अब इसका क्या ये मतलब है कि नफरतों को बढ़ाने के लिए इस तरह की फिल्में बनाई जाएं और एक बेवजह की खाई खोदी जाए।

आज कुछ गंदी मानसिकता के लोग पूरा सच लाने देना ही नहीं चाहते वो सिर्फ वो दिखाना चाहते है जिससे उन्हें फायदा हो उन्हे इस बात से भी मतलब नहीं है कि उनकी दिखाई बात से कितने घर बरबाद हो सकते हैं कितने बेवक्त मौत के आगोश में जा सकते हैं , और कितने बच्चे यतीम हो सकते हैं ! हम और हमारे जैसे करोड़ों लोग किसी फायदे की बात नहीं करते हैं हम लोग तो हर वर्ग की बात करते है, उनकी भलाई की बात करते हैं!
अगर ऐसा ना हो तो ऐसे ही नहीं हर त्यौहार हिन्दू भाई और मुसलमान भाई मिल कर मनाते हैं, शादियों से लेकर बीमारी दुखी तक में साथ रहते हैं, ज़रूरत पड़ने पर बगैर भेद भाव के खून का आदान प्रदान करते हैं।

"कश्मीर फाईल" फिल्म में कई गलत दृश्य प्रदशित किए गए हैं जनता को गुमराह किया गया है, एयरफोर्स की इजाजत के बिना भी बहुत कुछ गलत दिखाया गया है, इसमें जिस परिवार को बेस बनाया है उसकी, और एयरफोर्स का परमीशन लैटर व एग्रीमेंट प्रस्तुत करना चाहिए,अन्यथा इस फिल्म की पटकथा से लेकर डिस्ट्रीब्यूटर तक पर एफआईआर होनी चाहिए!!! लेकिन ऐसा शायद न हो क्योंकि आज दौर नफरतों का है इस फिल्म के जरिए राजनीति की जा रही है जहां नफरत दिखाओ पैसा कमाओ का प्रोपेगैंडा चलाया जा रहा है। 
इससे पहले जो आदिवासियों, नीची जाति और महिलाओं पर फिल्में बनी हैं उनको समर्थन क्यों नहीं मिला। क्या उनका मान सम्मान व परिवार नहीं था ।

उन लोगों को जो सिर्फ धर्म के एक ही चश्मे से सब देखना पसंद करते हैं। अब उनको एहतियात बरतने की ज़रूरत है।
वरना तो इस फ़िल्म को
थिएटर में देख कर लोगों का अजीब रिएक्शन ऐसा होता जा रहा है! ऐसा लग रहा है कि इनके अंदर के इंसान को मारकर इनका दिमाग़ हैक करके इन्हें उत्तेजित किया जा रहा हो, जो कभी भी किसी एक वर्ग का बुरा करने के लिए एक्टिव हो सकते हैं, इनका दिमाग़ मार कर इनकी सोच को मार कर सिर्फ नफ़रत और सिर्फ़ नफ़रत भरने की तैयारी हो रही है!
और ऐसी नफ़रत जो किसी भी दिन हैवानियत का रूप ले सकती है।

इससे पहले फिल्मों की कहानी और पुराने इतिहास तोड़ मरोड़ कर दिमागों में नफ़रत भरें, और इससे पहले ये नफ़रत का सांप अपने फन उठाए, तो उसके पहले अपने अड़ोस पड़ोस में अपने परिचितों में अपने दोस्तों में उन मुस्लिम लोगों और उन मुस्लिम परिवारों पर ज़रूर नज़र डालने की ज़रूरत है और उनकी हर हरकत पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि कब और किस जगह पर आपके पड़ोस के या परिचित मुसलमानों ने हिन्दू भाइयों के साथ बुरा सुलूक किया है, या फिर उनकी आस्था को आहत किया है।

मेरे दोस्तों अभी हमको अपने देश की खुशहाली के लिए बहुत कुछ करना है, जो नफ़रत की बातें फैला रहे हैं, जो नफ़रत की बातें कर रहे हैं अब बंद करना बंद करें!
क्योंकि तरक्की के साथ साथ सुकून भी ज़रूरी है हमारे व हमारे बच्चों के लिए भी,और आपके व आपके बच्चों के लिए भी,
इस फिल्म को लेकर सिर्फ़ कुछ लोग ही उत्तेजित हैं, बाकि तमाम लोग ये बात मान रहे हैं कि ये फ़िल्म नफ़रत फैलाने के लिए ही बनाई गई है,,,
जिसके कई खराब परिणाम भी सामने आने लगे हैं!
मौजूदा वक्त में राजनीति के स्टंट से अलग हट कर भाई चारा बनाए रखने की ज़रूरत है। जिसमें इंसान भी खुश रहे और इंसानियत भी बरकरार रहे।🙏💐

 *परवेज़ अख़्तर* 
क्राइम रिपोर्टर

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