खुदा का क़हर
*हम लोग अपनी हरकतों से कुछ दिन पहले खुदा का कहर देख चुके हैं।*
ख़बर *"परवेज़ अख्तर"* के ✍️से
अभी कुछ दिन पहले
कॅरोना ने,ऑक्सीज़न ने, अस्पतालों,ने और सिस्टम, ने तथा लाकडाउन, ने वो समा बाँधा था कि मौत के मूँह में समा कर कोई "लाश" बन गया था! किसी का इकलौता बेटा किसी का बाप कोई घर सम्हालने वाला शख्स मर गया पीछे जो छूट गया वो "ज़िंदा लाश" बन कर रह गया था!
तैरती लाशों को देख कर भी अनदेखा करने वाला हर शख्स ज़िन्दा होते हुये भी "एक लाश" बन गया था!
महामारी के वक्त मरने वाले को सीधे गंगा में नदियों में बहा दिया गया था! जलाने और विसर्जन की एक बहुत बड़ी आस्था और रस्म को दरकिनार करके दफ़ना दिया गया था!
और वो भी दो फिट पर तीन फिट पर..…
जिसका नतीजा दफनाने वाले को भी पता था कि क्या होगा! और दिखा भी के उन लाशों की क्या दुर्गति हुयी!
लाशों की तादात इतनी बढ़ गईं थीं कि कब्र खोदने वाले कम पड़ गए थे मुस्लिम कब्रस्तान में कब्रें जेसीबी से खोदी गईं थीं।
हमने अपनो को बहा कर, हमने अपनो को बगैर कोई आराम दिये, बगैर किसी सम्मान के, दफना कर उनके अंगों को कुत्ते व परिंदो को नोचते देखकर हम जिंदा होते हुये भी "ज़िन्दा लाश" बन कर रह गये थे!
किसी की मौत की ख़बर सुनकर जहाँ हम लोग चौंक जाया करते थे, पर उस वक्त ख़बर सुनकर कहते थे अच्छा.....वो भी नहीं रहे!
हम इतना मज़बूर हो गये थे! हम इतना बेहिस हो गये थे! हमारी अंतरात्मा हमारे जिस्म से निकलने से पहले ही मर गयी थी ।
हम जिन्दा लाश बन गए थे।
क्या नफ़रत क्या हिन्दू क्या मुसलमान क्या मन्दिर क्या मस्जिद सब भूल गए थे
अल्लाह ने भगवान ने अपने घरों में (मन्दिर मस्जिद) में बुलाना भी बंद कर दिया था।
पर सब कुछ नार्मल होने के बाद लोगों ने फिर से ऊपर वाले की नाराज़गी का काम करना शुरू कर दिया है!
त्रिपुरा में एक आंकड़ों के मुताबिक 23 मस्जिद जला दी गईं सैकड़ों घर जला दिए गए।
मुझे नहीं मालूम त्रिपुरा में मस्जिद जलाने वाले कौन लोग हैं!
मुझे ये भी नहीं पता कि ये नफ़रत की आग लगाने वाले कौन हैं!
और ये भी नहीं पता कि बेगुनाहों को मौत के मूंह में झोंकने वाले कौन हैं!
बस इतना पता है कि ये जो भी हैं इंसान की खाल ओढ़े हुए शैतान हैं!
और इन्ही शैतानों की वजह से अभी कुछ दिन पहले ऊपर वाले के गुस्से का शिकार पूरी दुनिया हूई थी!
जिसमें अपनो का कंधा भी नसीब नहीं हो रहा था।
हमारी हरकतों से कुदरत हमें पहले ही सजा दे रही है
एक बीमारी व आपदा पर कंट्रोल हो नहीं पाता है दूसरी नई बीमारी दस्तक दे रही होती है!
हमारे सिस्टम से कोई राहत मिल नहीं रही है! इकोनॉमी की पोजिशन सबको पता है आरबीआई के हालात किसी से छिपे नहीं हैं, बैंक खुद कंगाल हो रहे हैं उनकी तरफ से कोई छूट नहीं है, हर टैक्स अपने चरम पर है । मंहगाई अपने शबाब पर है! व्यापार पर तमाम तरह की पाबंदी हैं मैनुफैक्चरिंग से लेकर ट्रांसपोर्ट सेक्टर व जीएसटी से लेकर सेल तक में कई पेचीदीगियां हैं जिसमें बिज़नेस करना एक जंग लड़ने जैसा है! मध्यम वर्गीय लगातार बर्बादी की तरफ़ बढ़ रहा है!!
और उसके बाद भी............
फिर से खुदा के कहर की तैयारी।।
*परवेज़ अख्तर*
ब्यूरो चीफ़