मीडिया
*कसमें वादे प्यार वफ़ा सब वादे हैं ..वादों का क्या.......!!*
*बिकाऊ मीडिया जो खबरें दिखा दे वो खबरें हैं......उन "खबरों" का क्या !!*
आगे की खबर *परवेज़ अख्तर* की कलम से
पहले लोग अफवाहें उड़ाते थे झूठी खबरें फैलाते थे ,तो मीडिया सच ढूंढ़ कर लाता था और ज़माने को सच्चाई दिखाता था।
आज का 80 % मीडिया झूठ दिखाता है भ्रम फैलाता है नफ़रत दिखाता है।
तो ज़माना सच ढूंढ कर लाता सोशल मीडिया के माध्यम से ज़माने को सच दिखाता है!
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ "पत्रकारिता" ज़माने का आईना है!
जिसका काम ही था सच्चाई को दिखाना जिसका काम था अपनी कलम अपने कैमरे के माध्यम से ज़माने को इंसाफ दिलाना!
पर ये बहुत बड़ी विडम्बना ही है कि अब इस आईने पर एक धुँध चढ़ चुकी है जिस धुँध की वजह से सच्चाई बड़ी मुश्किल से बाहर झांक पाती है!
कितना अजीब है न मीडिया ये तो दिखा देता है कि पाकिस्तान में भूखे नंगे लोग हैं पर ये नहीं दिखाता है कि अपने यहाँ कितने लोग मुफलिसी में मौत को गले लगा रहे हैं,
मीडिया बुलेट ट्रेन मेट्रो ट्रेन की बोगियों की तारीफ़ में कसीदे तो गढ़ देती है,
पर उसको साधारण ट्रेनों की बोगियों में भूसे की तरह भरे इंसान नज़र नहीं आते हैं!
मीडिया ओवरब्रिज की खासियत बयान करते हुये उस पर फर्राटे भरते हुये लोगों को तो दिखा देती है पर पुल के नीचे के भयानक अतिक्रमण व जाम को दिखाते वक्त कैमरे बंद कर लेती है,
मीडिया आर्यन खान को 13 ग्राम नशीले पदार्थ के साथ हुयी गिरफ्तारी को तो चटनी चूर्ण लगा कर बार बार और कई बार दिखाती है !
पर मुद्रा पोर्ट पर पकड़े गये दो कंटेनर में 3000 किलो ग्राम मादक पदार्थ की ख़बर दिखाने में कंजूसी बरतती है !
मीडिया को ये तो दिख जाता है कि किस नेता की इज़्ज़त घटी !
पर ये नहीं दिखता है कि अपने देश की कितनी बच्चियों या महिलाओं की इज़्ज़त तार तार हुयी!
चैनलों की मीडिया को ये तो दिख जाता है कि किस नेता ने कौन सी पार्टी का दामन पकड़ा और किस नेता ने किसका दामन छोड़ा!
पर मीडिया को ये नहीं नज़र आता कि किस गरीब ने बेवक़्त दुनिया छोड़ा!
मीडिया ये दिखाने में कसर बाकी नहीं रखती कि लोगों ने इतने किलो सोना खरीदा इतनी मँहगी कार खरीदी या करोडों का घर खरीदा।
पर ये दिखाने में पूरी कंजूसी करती है कि कारोबार खत्म होने से भुखमरी के कगार पर कितने लोग पहुंच गए, बढ़ती मंहगाई से कितनों ने अपना सोना बेच डाला और कितनों ने घर बेच डाला!
मीडिया ये बताने में तो नहीं हिचकती है कि अब्दुल ने बीफ़ काटा और बेचा
पर ये कतई नहीं बताती है कि बिन्द्रा जी व सुनील कपूर जैसों की वजह से अपना देश बीफ़ एक्सपोर्ट करने में नम्बर वन पर है।
मीडिया ये तो दिखा या बता देती है कि किसी हिन्दू ने मुसलमान को मारा किसी मुस्लिम ने हिंदू को मारा, हिन्दुओ ने किसी मुस्लिम से जबरन नारे लगवाये किसी समुदाय ने किसी को घेरा!
पर ये नहीं बताती है कि मुस्लिम समुदाय ने किसी हिन्दू का अंतिम संस्कार उसी की रस्म के मुताबिक किया या किसी हिन्दू समुदाय ने किसी मुस्लिम का जनाज़ा मुस्लिम रीतिरिवाज़ से दफनाया!
मीडिया नफ़रत फैलाने के तो हर मूवमेंट को दिखाती है डिबेट कराती है!
पर ये नहीं बताती है कि क़ुदरत खान ने अज़ीज़ सिद्दीकी ने शादाब फैसल रेहान फराज़ ने किसी हिन्दू को खून देकर उनकी जान बचाई उनके घर राशन पहुंचाया।
अनिल रमेश मोहनीश पदम रूप ने किसी मुस्लिम परिवार की मदद की उनकी बेटी की शादी की,और बराबर से दुःख सुख में शामिल रहे!
आज मीडिया का जो वक़ार गिर गया है उसकी एक बड़ी वजह यही है कि इसने अपनी अहमियत खुद ही खत्म कर ली है कहीं पेपर व चैनल को बेच कर तो कहीं अपने ज़मीर को बेच कर। जिसके नतीजे में आज अपने देश का हर नागरिक इनकी भ्रमित खबरों को देखकर खुद भ्रमित हो गया है।
मुस्लिम को लगने लगा है कि कहीं हिन्दू की भीड़ उसे मार न दे !
तो हिन्दू को लगने लगा है कि कहीं मुस्लिम कुनबा उन्हें खत्म न कर दे।
जबकि इसके उलट अपने देश में ख़बरों से हटकर देखो तो हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब भाइयों की तरह रह रहे हैं। और एक दूसरे के लिये मन में मुहब्बत रख रहे हैं।
पर इसी के साथ हम लोगों को मीडिया की भड़काऊ खबरों से कहीं कहीं मोब्लिंचिंग की भी खबरों से दो चार होना पड़ता है!
*मीडियाकर्मी* सिर्फ एक बात पर बहुत गहराई से मंथन कर लें कि एक आतंकी अपनी गन से कुछ लोगों को मारता है , पर एक खराब पत्रकार अपनी कलम से अपनी ख़बर से समाज में अनगिनत लोगों को मौत के मूँह में ढकेलता है!
और इन जैसे पत्रकारों की वजह से निष्पक्ष व सच्ची ख़बर दिखाने व लिखने वाले पत्रकार भी हाशिये पर रहते हैं। और इनकी सच्ची खबरों को भी लोग शक की नज़र से देखते हैं।
बहरहाल हम *इसीलिये कहेंगे कि*
*कुछ बिकाऊ मीडिया की खबरें हैं..... उन खबरों का क्या ......*
*परवेज़ अख्तर*
ब्यूरो चीफ़