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धरती का स्वर्ग विवादों में

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*धरती की जन्नत "कश्मीर" विवादों के घेरे में।।*  ख़बर *परवेज़ अख़्तर* की✍️से  कितना अजीब है ना कि जब हम लोगों का मन उच्चाट होता था तो हम लोग फिल्म देखने जाते थे, क्योंकि फ़िल्में इंटरटेंमेंट करती थी, बहुत कुछ सिखाती थीं, बहुत ज्ञान देती थीं! पर हाल के दिनों से फिल्में अश्लीलता परोसने लगीं फिल्म मेकर लड़ाई, झगड़ा, एक्शन, क्राइम, दिखाने लगे जिससे लोगों में क्राईम करने फर्जी एक्शन करने और एक्टर्स की तरह दिखने के लिए उन्ही की तरह कपड़े पहनने लगे उन्ही की तरह नकल करने लगे। और अब हद खत्म करते हुए फिल्मे "नफ़रत परोसने" लगीं हैं, कहानियों को तोड़ मरोड़ कर दिखाने लगी हैं एक ऐसी नफ़रत जो यकीनन दीमागों पर हावी होकर भाई को भाई से अलग करने लगी हैं। फिल्में समाज का आइना होती हैं, फिल्मों की स्टोरी में फिल्मों के किरदारों में कुछ लोग अपने आप को देखने लगते हैं। ऐसी कई फिल्में बनी जो दंगों पर ही आधारित थीं जिनको आज तक सेंसर ने पास नहीं किया, और वो रिलीज़ ही नहीं हुईं !  ये ठीक भी हुआ क्योंकि गुज़रे कल की किसी बात से मन बेचैन हो दिल को तकलीफ हो तो उसको ना याद करना चाहिए और ना ही दोहरा

वोट प्रतिशत

*उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में वोट प्रतिशत 54.98 % जिसकी कुछ कड़वी सच्चाई!*   ख़बर *परवेज़ अख़्तर* की✍️से राष्ट्रहित में मतदान के लिए कई सामाजिक संगठनो ने वोट डालने की अपील की जिसमें मशहूर संगठन अमन शान्ति समिति ने अध्यक्ष इमरान कुरैशी की अगुवाई में और कई मीडिया संगठनो ने जिसमें प्रिन्ट मीडिया वर्किंग जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने अध्यक्ष अज़ीज़ सिद्दीकी की अगुवाई में, कई बार लोगों को मतदान के लिए जागरूक करने हेतु रैलियां निकाली पंपलेट बांटे और एफ.बी पर और  व/अ ग्रुप्स पर लगातार लोगों से अपील करते रहे, इसके अलावा तमाम देश वासियों ने कई तरह के माध्यम से एक दूसरे से मतदान करने के लिए कहा! उसके बावजूद उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 54.98 % की वोटिंग ने एहसास करा दिया है कि अभी भी मशीनरी सिस्टम के साथ साथ लोगों में भी जागरूकता की बहुत कमी है!  मशीनरी सिस्टम में बहुत बड़ी कमी ये है कि आधारकार्ड होने के बावजूद वोटिंग सिस्टम को अभी भी निर्वाचन कार्ड से ही मैच करा कर डालने दिया जाता है, अब के वक्त में आधार कार्ड तो हर शक्स लेकर घूमता है, पर निर्वाचन कार्ड ज्यादातर लोग कहीं रख कर भूले हुए हैं या व

चिकित्सा

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*समाज को मूँह चिढ़ाती स्वास्थ सेवायें*  ख़बर *परवेज़ अख्तर* की✍️ से स्वास्थसेवा के साथ नाम जुड़ा है सेवा का और अब स्वास्थ्य से सेवा का दूर दूर तक नाता नहीं है! जनता के लिये मंहगाई बेरोजगारी मुफलिसी परेशानी तो अपनी जगह हैं! इसी के साथ अगर किसी अपने का कोई बीमार होता है,या गम्भीर बीमारी होती है या फिर कोई एक्सीडेंटल मुसीबत आती है तो वो मध्यम वर्गीय परिवार पूरी तरह चौपट हो जाता है जो रोज मर्रा की ज़िंदगी में ही घुट रहा होता है! धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर्स अब भगवान नहीं रहे ! अब ये बिज़नेस मैंन हो गए हैं, सौदागर हो गए हैं, जो हर चीज़ में सौदा कर रहे हैं खून से लेकर शरीर के अंग तक का सौदा कर रहे हैं ! फर्जी जांच करा कर मंहगी दवाइयां लिख कर बेवजह आपरेशन करके कई डाक्टर लुटेरे बन चुके हैं! कई जगहों पर तो इंसान अपना सबकुछ बेचकर भी डाक्टर व अस्पताल का कर्ज़दार बना रहता है और तो और कई जगहों पर तो ऐसा भी देखने में आया है कि मरीज़ के मर जाने के बाद भी लाश लाने के लिये भी डॉक्टर को पेमेंट करना होता है! कितना अजीब लगता है कि एक डॉक्टर जब किसी का ट्रीटमेंट करता है तो ढेर सारी जांच कराता है दवाइय

खुदा का क़हर

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*हम लोग अपनी हरकतों से कुछ दिन पहले खुदा का कहर देख चुके हैं।*   ख़बर *"परवेज़ अख्तर"* के ✍️से अभी कुछ दिन पहले कॅरोना ने,ऑक्सीज़न ने,  अस्पतालों,ने और सिस्टम, ने तथा लाकडाउन, ने वो समा बाँधा था कि मौत के मूँह में समा कर कोई "लाश" बन गया था! किसी का इकलौता बेटा किसी का बाप कोई घर सम्हालने वाला शख्स मर गया पीछे जो छूट गया वो "ज़िंदा लाश" बन कर रह गया था!  तैरती लाशों को देख कर भी अनदेखा करने वाला हर शख्स ज़िन्दा होते हुये भी "एक लाश" बन गया था! महामारी के वक्त मरने वाले को सीधे गंगा में  नदियों में बहा दिया गया था! जलाने और विसर्जन की एक बहुत बड़ी आस्था और रस्म को दरकिनार करके दफ़ना दिया गया था!  और वो भी दो फिट पर तीन फिट पर..… जिसका नतीजा दफनाने वाले को भी पता था कि क्या होगा! और दिखा भी के उन लाशों की क्या दुर्गति हुयी!  लाशों की तादात इतनी बढ़ गईं थीं कि कब्र खोदने वाले कम पड़ गए थे मुस्लिम कब्रस्तान में कब्रें जेसीबी से खोदी गईं थीं। हमने अपनो को बहा कर, हमने अपनो को बगैर कोई आराम दिये, बगैर किसी सम्मान के, दफना कर उनके अंगों को कुत्ते व परिंदो को

गुमशुदगी

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*सूझबूझ से लौटी खुशियां*   *परवेज़ अख़्तर ✍️*  थाना प्रभारी हुसैनगंज *अजय कुमार सिंह* की सूझबूझ और  एक्टिव कार्यशैली से अश्विनी कुमार निवासी पुराना बर्फखाना उदयगंज थाना हुसैन गंज के घर खुशियां वापस आ गयीं ! कल करवा चौथ के दिन मंजू वर्मा पत्नी अश्विनी वर्मा किसी बात पर नाराज़ होकर घर से कहीं चली गयी थी ! घर वालों ने हर जगह तलाश किया नहीं मिलने पर हताश होकर मंजू वर्मा नामक महिला की गुमशुदगी की सूचना थाना हुसैनगंज को दी गयी !  सूचना मिलते ही कमिश्नरेट पुलिस के तेज़तर्रार इंस्पेक्टर *अजय कुमार सिंह* जो खुद भी एक्टिव रहते हैं और मातहत को भी काम के वक्त पूरी तरह एक्टिव रखते हैं। सब इंस्पेक्टर शुक्ला जी व पुलिस टीम को मंजू वर्मा को तलाश करने के लिये लगाया। काफ़ी मशक्कत के बाद आज मंजू वर्मा को तलाश कर लिया गया जो घरेलू कलह के चलते घर से चली गयी थी, और अप्रिय घटना को अंजाम देने के फ़िराक में थी। इंस्पेक्टर अजय कुमार की तत्परता से तुरन्त एक्शन में आने की वजह से अश्विनी वर्मा के घर कोई अनहोनी होने से बच गयी। थाने लाकर उसको व उसके पति को अच्छी तरह समझा कर दोनों में सुलह करा कर दोनों को घर भेजा। मंजू वर्

मीडिया

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*कसमें वादे प्यार वफ़ा सब वादे हैं ..वादों का क्या.......!!*   *बिकाऊ मीडिया जो खबरें दिखा दे वो खबरें हैं......उन "खबरों" का क्या !!* आगे की खबर *परवेज़ अख्तर* की कलम से पहले लोग अफवाहें उड़ाते थे झूठी खबरें फैलाते थे ,तो मीडिया सच ढूंढ़ कर लाता था और ज़माने को सच्चाई दिखाता था। आज का 80 % मीडिया झूठ दिखाता है भ्रम फैलाता है नफ़रत दिखाता है।  तो ज़माना सच ढूंढ कर लाता सोशल मीडिया के माध्यम से ज़माने को सच दिखाता है! लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ "पत्रकारिता" ज़माने का आईना है! जिसका काम ही था सच्चाई को दिखाना जिसका काम था अपनी कलम अपने कैमरे के माध्यम से ज़माने को इंसाफ दिलाना! पर ये बहुत बड़ी विडम्बना ही है कि अब इस आईने पर एक धुँध चढ़ चुकी है जिस धुँध की वजह से सच्चाई बड़ी मुश्किल से बाहर झांक पाती है! कितना अजीब है न मीडिया ये तो दिखा देता है कि पाकिस्तान में भूखे नंगे लोग हैं पर ये नहीं दिखाता है कि अपने यहाँ कितने लोग मुफलिसी में मौत को गले लगा रहे हैं,  मीडिया बुलेट ट्रेन मेट्रो ट्रेन की बोगियों की तारीफ़ में कसीदे तो गढ़ देती है, पर उसको साधारण ट्रेनों की  बोगियों में भूसे की तर

रोड के गड्ढे

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*माननीय प्रधानमंत्री जी के आगमन पर लखनऊ की कुछ रोड रातों रात बन गयीं!*  *काश कि अपने प्रधानमंत्री जी का दौरा पूरे लखनऊ में हो जाये!!*   *परवेज़ अख़्तर* पहले जब कोई हादसा होता था उसकी ख़बर चलती थी उस खबर का असर होता था। जैसे कि कोई स्कूली वैन से कोई हादसा होता था तो हर स्कूल की वैन की फ़िटनेस से लेकर ड्राइवर तक की फ़िटनेस चेक कर ली जाती थी! कहीं कोई बिल्डिंग गिरती थी तो शहर की हर जर्ज़र इमारतों पर अभियान चलता था! इसी प्रकार कोई घटना होती थी तो उससे रिलेटेड चीजों को लेकर संबंधित अधिकारी अपने आप संज्ञान में लेकर एक्शन में आ जाते थे। पर अब ऐसा कतई नहीं होता  अब किसी घटना को सिर्फ ख़बर की तरह पढ़ कर रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाता है। अभी हाल ही में सरोजनी नगर क्षेत्र में गड्ढे युक्त सड़क से एक नवविवाहिता को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।उस हादसे से एक जान गई दो घरों की खुशियां उजड़ गयीं इसी तरह रोज इन जानलेवा गड्ढों से हादसे हो रहे हैं लोग चोटिल हो रहे हैं और कहीं कहीं दम भी तोड़े दे रहे हैं। पर मजाल है कि कोई अधिकारी या नेता या फिर अभिनेता इस पर आवाज़ उठा ले! वैसे तो पूरा शहर गड्ढों की बिसात से बिछा